मनमुटाव टकराव या अफवाह UP में CM योगी को लेकर आखिर चल क्या रहा है?

यूपी में योगी ने लगाया दम, पीएम मोदी के बाद सबसे ज्यादा डिमांड योगी की, केजरीवाल ने योगी आदित्यनाथ को हटाने का शगुफा छोड़कर भाजपा को सफाई देने पर मजबूर कर दिया

मौजूदा चुनाव का एक महत्वपूर्ण पहलू यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अपने गृह राज्य के बाहर प्रचार अभियान से लगभग नदारद होना भी है। मई के पहले सप्ताह तक योगी आदित्यनाथ ने 100 रैलियां और रोड शो को संबोधित किया था लेकिन इनमें से केवल 26 ही यूपी के अलावा दूसरे राज्यों में आयोजित किए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद अमित शाह, राजनाथ और योगी आदित्यनाथ भाजपा के स्तर प्रचार हैं, दरअसल दूसरे राज्यों की बीजेपी इकाइयों में योगी आदित्यनाथ की उतनी ही मांग हैं जितनी पीएम के लिए है। बताया जा रहा है कि चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से पहले योगी आदित्यनाथ को प्रचार के लिए 200 से ज्यादा अनुरोध मिले थे लेकिन उन्होंने सभी को इनकार कर दिया। आखिरकार यह संदेश चला गया कि चुनाव में आदित्यनाथ का इरादा यूपी तक ही सीमित रहने का है और वह अन्य राज्यों में भाजपा को अपनी सेवाएं नहीं देंगे। उनके इस फैसले से बीजेपी हलकों में खलबली मच गई लेकिन यूपी के सीएम ने यह कहकर सभी अटकल को खारिज कर दिया है कि वह यूपी पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं और 80 लोकसभा सीटों में से अधिक से अधिक सीट जीतना चाहते हैं ताकि पीएम मोदी को 370 के घोषित लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिल सके। पिछली बार भाजपा ने 62 सीटे जीती थी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने योगी आदित्यनाथ को हटाने का शगुफा छोड़कर भाजपा को सफाई देने पर मजबूर कर दिया।

*(रेवन्ना सेक्स स्कैंडल मामले के बाद मोदी के वाराणसी नामांकन में जद(एस) को छोड़कर एनडीए के सभी दलों के नेता उपस्थित थे)*
जिस दिन मोदी अपना नामांकन पत्र दाखिल करने गए थे उस दिन वाराणसी में उनका शक्ति प्रदर्शन दिलचस्प था। पूर्व प्रधानमंत्री देवगुड़ा की पार्टी जिसे भाजपा के साथ कर्नाटक में गठबंधन है जे
डीएस को छोड़कर एनडीए के सभी दलों के नेता उपस्थित थे। भाजपा ने कर्नाटक में जेडीएस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा हैं लेकिन प्रज्वल रेवन्ना सेक्स स्कैंडल सामने आने के बाद वह अपने सहयोगी से दूरी बनाने की सख्त कोशिश कर रही है। ऐसा लगता है कि जेडीएस के किसी भी नेता को वाराणसी में शक्ति प्रदर्शन में भाग लेने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था। यहां तक की कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमार स्वामी को भी नहीं जिन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था और जिन्होंने रेवन्ना को पार्टी से निलंबित करके उन्हें एक तरह से बेदखल कर दिया था। यह देखना दिलचस्प होगा की चुनाव के बाद अगर मोदी तीसरी बार जीतते हैं तो बीजेपी जेडीसी के साथ कैसा व्यवहार करती है।

(शरद के बयान पर मोदी की सलाह)
शरद पवार की इस टिप्पणी के साथ ही की चुनाव के बाद कई क्षेत्रीय दल कांग्रेस के करीब आ सकते हैं, एनसीपी के कांग्रेस में संभावित विलय की अटकलें तेज हो गई है। ऐसा लगता है कि यह शरद पवार के बयान का परिणाम है जिसके कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार और शिवसेना अध्यक्ष उदय ठाकरे को अपनी पार्टियों का विलय करके भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल होने की सलाह दी। राज्य भाजपा के कुछ अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि मोदी का पावर और उद्धव को एनडीए में शामिल होने का निमंत्रण उनकी पार्टी के उन कार्यकर्ताओं के बीच भ्रम पैदा करने की एक राजनीतिक रणनीति है जो उनके प्रति वफादार रहते हैं मोदी की सलाह को खारिज करते हुए पवार ने कहा कि वह कभी भी नेहरू गांधी विचारधारा को नहीं छोड़ेंगे और मुस्लिम विरोधी रूप अपनाने वालों से हाथ मिलाएंगे। उद्धव शिव सेना ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मोदी की टिप्पणियां भाजपा की घबराहट को दर्शाती है

:-   पंजाब केसरी के सौजन्य से

 

 

 

 

 

 

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