योगिनी एकादशी पर जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, वरना नहीं मिलेगी पापों से मुक्ति, जानें इसका महत्व…

आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष में विशेष रूप से योगिनी एकादशी व्रत रखा जाता है। इस​ दिन व्रत और भगवान विष्णु की पूजा करने से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है। शास्त्रों के अनुसार योगिनी एकादशी, निर्जला एकादशी के बाद और देवशयनी एकादशी से पहले की जाती है।

आषाढ़ माह की योगिनी एकादशी की तिथि 1 जुलाई, दिन सोमवार को सुबह 10 बजकर 26 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं, इसका 2 जुलाई, दिन मंगलवार को सुबह 8 बजकर 42 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, इस साला योगिनी एकादशी का व्रत 2 जुलाई को रखा जाएगा।

जानें शुभ मुहूर्त

उदया तिथि के अनुसार यूं तो योगिनी एकादशी की तिथि सुबह जल्दी समाप्त हो जाएगी, लेकिन 2 जुलाई को त्रिपुष्कर योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है। दोनों योग योगिनी एकादशी की तिथि से लेकर अगले दिन 3 जुलाई को सुबह ब्रह्म मुहूर्त तक रहेंगे। दोनों ही योग बहुत शुभ हैं।

ऐसे में तिथि समाप्त हो जाने के बाद भी योगिनी एकादशी के व्रत का पालन पुरे दिन 2 जुलाई को रहेगा और पारण 3 जुलाई को होगा। पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 2 जुलाई को सुबह मुहूर्त सुबह 8 बजकर 56 मिनट से शूरू होगा और दोपहर 2 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। यानी कुल अवधि 6 घंटे की है।

योगिनी एकादशी का महत्‍व

हिंदू धर्म के अनुसार योगिनी एकादशी निर्जला एकादशी के बाद और देवशयनी एकादशी से पहले की जाती है। मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से आपके घर में धन, संपत्ति, वैभव आता है और आपको सुख समृद्धि प्राप्‍त होती है। भगवान विष्णु के योग निद्रा में जाने से पहले इस एकादशी पर पूजा करने और भजन कीर्तन करने का खास महत्‍व होता है। ऐसा मानते हैं कि इस दिन ईश्‍वर की कृपा आपको प्राप्‍त होती है और पूरे परिवार पर आपकी कृपा बनी रहती है।

योगिनी एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, स्वर्ग लोक में कुबेर नाम का राजा रहता था। वह शिव भक्त था। रोजाना महादेव की पूजा किया करता था। उसका हेम नाम का माली था, जो हर दिन पूजा के लिए फूल लाता था। माली की पत्नी का नाम विशालाक्षी था। वह बेहद सुंदर थी। एक बार जब सुबह माली मानसरोवर से फूल तोड़कर लाया, लेकिन कामासक्त होने की वजह से वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद करने लगा।

राजा को उपासना करने में देरी हो गई, जिसकी वजह से वह क्रोधित हुआ। ऐसे में राजा ने माली को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि तुमने ईश्वर की भक्ति से ज्यादा कामासक्ति को प्राथमिकता दी है, तुम्हारा स्वर्ग से पतन होगा और तुम धरती पर स्त्री वियोग और कुष्ठ रोग का सामना करोगे। इसके बाद वह धरती पर आ गिरा, जिसकी वजह से उसे कुष्ठ रोग हो गया और उसकी स्त्री भी चली गई। वह कई वर्षों तक धरती पर कष्टों का सामना करता रहा। एक बार माली को मार्कण्डेय ऋषि के दर्शन हुए। उसने अपने जीवन की सभी परेशानियों को बताया।

ऋषि माली को बातों को सुनकर आश्चर्य हुआ। ऐसे में मार्कण्डेय ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी के व्रत के महत्व के बारे में बताया। मार्कण्डेय ने कहा कि इस व्रत को करने से तुम्हारे जीवन के सभी पाप खत्म होंगे और तुम पुनः भगवत कृपा से स्वर्ग लोक को प्राप्त करोगे। माली ने ठीक ऐसा ही किया। भगवान विष्णु ने उसके समस्त पापों को क्षमा करके उसे पुनः स्वर्ग लोक में स्थान प्रदान किया।

 

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