अगर भाजपा 2024 का लोकसभा चुनाव जीत गई तो ऑपरेशन लोटस बहुत तेजी से चलेगा

ओडिशा में नवीन पटनायक की बीजू जनता दल और बिहार में नीतीश की जनता दल यूनाइटेड को भाजपा में विलय के लिए या तोड़फोड़ के लिए बड़ा दबाव होगा, वहीं एनसीपी शिवसेना, आम आदमी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा में भी तोड़फोड़ होगी, मोदी तुरंत विपक्षी पार्टियों को तोड़ने में जुटेंगे!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार के क्रम में पश्चिम बंगाल की अपनी आखिरी सभा में जो कहा वह बहुत अहम है। उन्होंने कहा कि चार जून के बाद अगले छह महीने में देश में बड़ा राजनीतिक भूचाल आएगा। इसके आगे उन्होंने इसमें जोड़ा कि तमाम परिवारवादी पार्टियां अपने आप बिखर जाएंगी क्योंकि उनके कार्यकर्ता भी अब थक गए हैं। उनको लगने लगा है कि देश किधर जा रहा है और ये पार्टियां किधर जा रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान मामूली नहीं है। यह सिर्फ आखिरी चरण में मतदान को प्रभावित करने या मतदाताओं को लुभाने की कोशिश नहीं है, बल्कि इससे भाजपा की आगे की राजनीतिक योजना की रूपरेखा का खुलासा होता है। इससे यह अंदाजा लग रहा है कि अगर भाजपा जीतती है तो ऑपरेशन लोटस बड़े पैमाने पर चलेगा। प्रधानमंत्री ने परिवारवादी पार्टियों के टूटने, बिखरने की बात कही है लेकिन ऐसा नहीं है कि जो पार्टियां किसी खास राजनीतिक परिवार द्वारा संचालित नहीं हैं उनके ऊपर भाजपा का निशाना नहीं है। अगर इस बार भाजपा जीतती है तो दो ऐसी पार्टियां उसके निशाने पर आएंगी, जिनमें परिवारवाद नहीं है। पहली पार्टी ओडिशा में नवीन पटनायक की बीजू जनता दल है और दूसरी बिहार में नीतीश कुमार की जनता दल यू। लंबे समय से भाजपा की नजर इन दोनों पार्टियों पर है। भाजपा के कई नेता इस बात का दावा करते हैं कि पार्टियों का विलय ही भाजपा में हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो टूट फूट होगी। जहां तक परिवारवादी पार्टियों का सवाल है तो कई पार्टियां शिव सेना और एनसीपी की गति को प्राप्त हो सकती हैं। अगर भाजपा फिर से जीत कर केंद्र में सरकार बनाती है तो कई क्षेत्रीय पार्टियों में तोड़ फोड़ कराने की कोशिश होगी। ऐसी कोशिश कांग्रेस को भी तोड़ने की होगी। कांग्रेस के बचाव की एक ही संभावना दिख रही है कि इस बार लोकसभा चुनाव में उसकी सीटों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। अगर कांग्रेस की सीटों में 25 से 30 सीट का भी इजाफा होता है और वह 75 से 80 सीट तक पहुंच जाती है तब तो उसके बारे में यह धारणा बनेगी कि वह वापसी के रास्ते पर है। लेकिन अगर सीटें नहीं बढ़ती हैं या दो चार ही बढ़ती हैं तो उसके लिए बड़ा खतरा पैदा होगा। फिर छिटपुट नेता नहीं टूटेंगे, एकमुश्त नेता टूटेंगे। केंद्र में भी टूट होगी और राज्यों में भी।

कांग्रेस के अलावा जिन पार्टियों पर खतरा है उनमें अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी है। पार्टी अगर लोकसभा चुनाव में दो चार सीटों पर सिमटती है तो उसके अंदर भी टूट फूट हो सकती है। पार्टी के कई नेता पहले से भाजपा के संपर्क में हैं। उधर झारखंड मुक्ति मोर्चा पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। पार्टी के संस्थापक शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन भाजपा में शामिल होकर दुमका सीट से चुनाव लड़ रही हैं। अगर वे जीत जाती हैं तो वहां ऑपरेशन लोटस गति पकड़ेगा। ध्यान रहे पार्टी के दो और विधायक, लोबिन हेम्ब्रम और चामरा लिंडा भी बागी होकर इस बार लोकसभा का चुनाव लड़े हैं। तेलंगाना में बीआरएस के ऊपर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।

(महात्मा गांधी को लेकर मोदी का बयान, सोशल मीडिया में आया भूचाल, कैसे नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग, गांधी को अपना आदर्श मानते थे)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में महात्मा गांधी को लेकर कह दिया कि उनको दुनिया में कोई नहीं जानता था और जब ‘गांधी’ फिल्म बनी तब लोगों ने उनको जाना। उन्होंने कहा कि 75 साल में सरकारों को कुछ करना चाहिए था ताकि दुनिया गांधी को जानती। उनके इस बयान को बाद सोशल मीडिया में भूचाल आया है। राहुल गांधी ने मोदी पर तंज किया। कांग्रेस और तमाम विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने सोशल मीडिया में पोस्ट लिख कर गांधी की महानता के बारे में बताया। सोशल मीडिया में भाजपा विरोधी जो इकोसिस्टम है उससे जुड़े लोगों की तो टाइमलाइन भर गई गांधी से जुड़ी सामग्री से। कोई खोज कर ले आया कि गांधी तीन बार टाइम मैगजीन के कवर पर छपे। गांधी गोलमेज सम्मेलन में गए तो कैसे चार्ली चैपलिन उनसे मिलने आए। गांधी के निधन पर महानतम वैज्ञानिक आइंस्टीन ने क्या कहा। गांधी के निधन की खबरें दुनिया के अखबार में कैसे छपीं और कैसे नेलसन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर, गांधी को अपना आदर्श मानते थे आदि आदि। अब सवाल है कि क्या ये सारे लोग सचमुच यह मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को इन सब बातों की जानकारी नहीं है? क्या मोदी ने अज्ञानवश यह बात कही है? जो ऐसा मानता है वह मूर्खों के स्वर्ग में है। मोदी को सब पता है कि गांधी कितने महान है और अपनी मृत्यु से पहले ही वे कितने मशहूर हो चुके थे। उनको यह भी पता है कि वे मशहूर थे तभी रिचर्ड एटनबरो उन पर फिल्म बनाने आए। उनको यह भी जानकारी है कि तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फिल्म बनाने के सरकार की ओर से पैसे दिलवाए। इसलिए मोदी के अज्ञान का तो यह मामला ही नहीं है। विचार इस पर होना चाहिए कि उन्होंने ऐसा कहा क्यों? उनका या उनकी पार्टी का आगे क्या एजेंडा है और इसका क्या नुकसान हो सकता है? सब कुछ जानते बूझते अगर मोदी कह रहे हैं कि गांधी को कोई नहीं जानता था और फिल्म के जरिए लोगों ने जाना तो उसके पीछे कोई मंशा है, कोई योजना है। वह योजना क्या है? गांधी का महत्व कम करना तो एक बात स्पष्ट रूप से समझ में आती है, जो आरएसएस और भाजपा का पुराना एजेंडा है। एक मंशा अपने को बतौर भगवान स्थापित करने की भी है। वैसे गांधी के बरक्स पहले सावरकर को और अब अंबेडकर को आगे करने का जो प्रयास है वह भी एक कारण हो सकता है। गांधी जाति, धर्म, हिंसा और एकाधिकारवादी राजनीति के रास्ते में बाधा बनते हैं। तभी उनको निशाने पर लिया जा रहा है।

(ओडिशा में अस्मिता का दांव कितना चलेगा, भाजपा के पास ओडिशा में कोई चेहरा व मुद्दा नहीं, हालांकि वह दावा कर रही कि राज्य में उसकी सरकार बन रही है, राम मंदिर का मुद्दा उड़ीसा में चलेगा नहीं क्योंकि ओड़िया लोगों के लिए भगवान जगन्नाथ सबसे पहले हैं और उनके मंदिर का सौंदर्यकरण मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कराया है, वही संबित पात्रा के माफीनुमा बयान की भगवान जगन्नाथ मोदी के भक्त हैं से भी भाजपा की स्थिति बहुत बिगड़ी है)

ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी के नेता न सिर्फ लोकसभा की ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं, बल्कि पार्टी की ओर से यह दावा भी किया जा रहा है कि राज्य में उसकी सरकार बनने जा रही है। लेकिन मुश्किल यह है कि भाजपा के पास ओडिशा में कोई मुद्दा नहीं है और न कोई चेहरा है, जिसको आगे करके वह चुनाव लड़ रही है। भाजपा के पास ले देकर एक अस्मिता का मुद्दा है और उसका टारगेट सिर्फ वीके पांडियन हैं। पूर्व आईएएस अधिकारी वीके पांडियन को निशाना बना कर भाजपा चुनाव लड़ रही है। भाजपा के साथ मुश्किल यह है कि वह नवीन पटनायक पर हमला नहीं कर पा रही है। चुनाव से थोड़े दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको अपना मित्र बताया था और उनकी पार्टी बीजू जनता दल के साथ तालमेल की बात भी आगे बढ़ गई थी। दिलचस्प बात यह है कि उस समय तालमेल की बातचीत वीके पांडियन ही कर रहे थे। तब उनसे भाजपा को कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन अब भाजपा ने यह मुद्दा बनाया है कि वे तमिलनाडु के हैं और वे कैसे ओडिशा के मुख्यमंत्री बन सकते हैं। इसके अलावा भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं है। अयोध्या में राममंदिर का मुद्दा ओडिशा में चलेगा नहीं क्योंकि ओडिया लोगों के लिए भगवान जगन्नाथ सबसे पहले हैं और उनके मंदिर का सौंदर्यीकरण नवीन बाबू कराया है। ऊपर से भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने गलती से ही सही लेकिन कह दिया कि भगवान जगन्नाथ भी मोदी के भक्त हैं। इससे भी भाजपा की स्थिति बिगड़ी है।
   सौजन्य से पंजाब केसरी

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