पुरी : आषाढ़ अमावस्या को जगन्नाथ मंदिर के पट खुलते हैं और फिर आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है, जो कि समूचे विश्व में प्रसिद्ध है। पुरी के श्रीमंदिर में भगवान जगन्नाथ के 12 मुख्य उत्सव मनाए जाते हैं। रथ यात्रा उनमें से एक है। आषाढ़ के महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ व उनके सहोदर भाई-बहन के अपनी मौसी के घर या गुंडिचा मंदिर में नौ दिनों के प्रवास का यह वार्षिक उत्सव मनाया जाता है।
जानें रथ यात्रा की कैसे हुई शुरुआत?
ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ धाम में रथ यात्रा की रीतियां शुरू हो चुकी हैं। अभी बीती ज्येष्ठ पूर्णिमा को श्रीमंदिर में तीनों देव प्रतिमाओं को स्नान कराया गया। मान्यता है कि 108 घड़े जल से स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और फिर 15 दिन के लिए दर्शन नहीं देते हैं। इसे अनासरा विधान कहते हैं। हालांकि बीमार पड़ने की मान्यता एक किवदंती से आती है, वास्तव में इस दौरान प्रतिमाओं को संरक्षित किए जाने के विधान भी होते हैं, इसलिए पुरी का श्रीमंदिर 15 दिन के लिए बंद रहता है।
देवर्षि नारद ने कहा कि, जब पिता मौजूद हों तो पुत्र सबसे अच्छा कैसे हो सकता है। इस विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा तो ब्रह्माजी को ही करनी चाहिए। आप मेरे साथ चलिए और उन्हें आमंत्रण दीजिए, वह जरूर आएंगे। राजा इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए और तुरंत बोल पड़े कि, चलिए देवर्षि मैं अभी आपके साथ चलता हूं।
ये सारे प्रबंध करने के बाद राजा देवर्षि नारद के साथ ब्रह्मलोक पहुंचे और ब्रह्माजी से श्रीमंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के लिए आग्रह किया। ब्रह्मदेव ने राजा की बात मान ली और उनके साथ उत्कल के श्रीक्षेत्र पहुंचे। जब वे सभी वापस धरती पर लौटे तो तब तक कई सदियां बीत चुकी थीं। अब पुरी में किसी और का शासन था। राजा के सभी परिजनों की मृत्यु हो चुकी थी, बल्कि उनके सभी संबंधियों की पीढ़ियों में कोई नहीं बचा था। इस दौरान श्रीमंदिर भी समय की परतों के साथ रेत के नीचे दब गया था और सदियों तक रेत में ही रहा था।
इधर, रानी गुंडिचा को भी अपने पति के लौट आने का अहसास हुआ तो वह समाधि से उठीं। जब उन्होंने आंखें खोलीं तो सामने एक युवा दंपति हाथ जोड़े खड़ा था। रानी ने उनका परिचय पूछते हुए कहा कि क्या तुम विद्यापति और ललिता के बेटे-बहू हो? तब सामने खड़े दंपति ने कहा कि नहीं, वे तो हमारे बहुत पुराने पूर्वज थे, हम कई पीढ़ियों से आपको माई मानकर पूजते आ रहे हैं, यह हमारे कुल की बहुत पुरानी परंपरा है। आप हमारे लिए देवी हैं और हम ये मानते हैं कि आपकी ही वजह से पुरी क्षेत्र में कभी कोई आपदा नहीं आई।