स्मृति की जगह कंगना आ गई, पहले वाजपेई उदार और आडवाणी कट्टरपंथी, फिर मोदी कट्टरपंथी तो आडवाणी उदार, सुषमा स्वराज उदार तो उमा कट्टरपंथी अब आगे हो सकता है मोदी उदार तो अमित शाह कट्टरपंथी और फिर अमित शाह उदार तो योगी कट्टरपंथी)

भारतीय जनता पार्टी में पता नहीं रणनीति के तहत होता है या स्वाभाविक रूप से होता है कि उसके कट्टरपंथी नेताओं के उदार होने और फिर नए कट्टरपंथी नेताओं के उभरने का चक्र चलता रहता है। जैसे अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी एक जैसे नेता थे। इनमें से वाजपेयी उदार और आडवाणी कट्टरपंथी हो गए। फिर जब नरेंद्र मोदी आए तो मोदी कट्टरपंथी हो गए और आडवाणी उदार हो गए। मोदी और अमित शाह में आगे हो सकता है कि मोदी उदार और शाह कट्टरपंथी हो जाएं और फिर शाह उदार और योगी आदित्यनाथ कट्टरपंथी नेता की जगह लें। यह क्रम महिला नेताओं में भी चलता है। सुषमा स्वराज उदार चेहरा थीं तो उमा भारती कट्टरपंथी थीं। फिर उमा भारती उदार हो गईं या राजनीति से बाहर हो गईं और उनकी जगह स्मृति ईरानी ने ली। अब लोकसभा का चुनाव हारने के बाद स्मृति ईरानी उदार हो गई हैं और उनकी जगह कंगना रनौत ने ले ली है। लोकसभा चुनाव हारने के बाद स्मृति ईरानी का पहली बार एक लंबा इंटरव्यू आया, जिसमें वे बहुत वस्तुनिष्ठ तरीके से राहुल गांधी की राजनीति का विश्लेषण कर रही हैं। वे जो कह रही हैं उसे तर्क और तथ्यों की कसौटी पर कसने की जरुरत है लेकिन पहली बार दिखा कि उनकी बातों में राहुल गांधी के लिए नफरत नहीं थी। लेकिन उनकी जगह ले रहीं कंगना रनौत ने हाल में दिए अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए कई इंटरव्यू दिए तो सिर्फ नफरत का प्रदर्शन किया है। उन्होंने पहले किसानों के प्रति नफरत जाहिर की और कहा कि किसान आंदोलन में बलात्कार हो रहे थे, लाशें लटकी हुई थीं और अगर सरकार मजबूत नहीं होती तो बांग्लादेश बन जाता। इसके बाद उन्होंने इंदिरा गांधी के प्रति नफरत दिखाते हुए कहा कि जब बांग्लादेश का विभाजन हुआ तब इंदिरा गांधी देश भी बांटना चाहती थीं। उन्होंने राहुल गांधी के प्रति अपनी नफरत जाहिर करते हुए एक न्यूज चैनल के एंकर से पूछ दिया कि आखिर राहुल ने नेता विपक्ष बनने लायक किया क्या है? जब एंकर ने 99 सीटों का हवाला दिया तो कंगना एंकर से ही नाराज हो गईं। उन्होंने जाति गणना पर भी अपनी राय दी है। पहले इस तरह की बातें स्मृति ईरानी कहा करती थीं। अब ऐसा कहने की जिम्मेदारी कंगना रनौत की है।

(गौबा, भल्ला, संजय मिश्रा का युग समाप्त हुआ, झारखंड केडर के आईएएस अधिकारी राजीव गोबा ने सबका रिकॉर्ड तोड़ दिया, वह पहले अपने राज्य में गृह सचिव फिर केंद्र में गृह सचिव और उसके बाद कैबिनेट सचिव रहे)

राजीव गौबा आखिरकार रिटायर हो गए। लगातार पांच साल तक देश के सर्वोच्च अधिकारी यानी कैबिनेट सचिव के पद पर रहने का रिकॉर्ड बना कर वे शुक्रवार यानी 30 अगस्त को रिटायर हुए। उनकी जगह टीवी सोमनाथन को कैबिनेट सचिव बनाया गया है। पहले भी कई कैबिनेट सचिव हुए, जिनको बार बार सेवा विस्तार मिला। मनमोहन सिंह के समय भी केएम चंद्रशेखर चार साल तक कैबिनेट सचिव रहे थे। लेकिन झारखंड कैडर के आईएएस अधिकारी राजीव गौबा ने सबका रिकॉर्ड तोड़ दिया। नौकरशाही का रिकॉर्ड रखने वाला कोई जानकार यह बता सकता है कि आज तक कोई आईएएस ऐसा हुआ है या नहीं, जो अपने कैडर वाले राज्य में मुख्य सचिव रहा हो, फिर केंद्र में गृह सचिव और उसके बाद कैबिनेट सचिव रहा हो। आईएएस बनने वाले जिन तीन में से कोई एक पद मिलने का सपना देखते हैं उन तीनों पर राजीव गौबा रहे। राजीव गौबा से कुछ दिन पहले ही अजय कुमार भल्ला रिटायर हुए। उन्होंने भी पांच साल तक गृह सचिव रहने का रिकॉर्ड बनाया। वे अगस्त 2019 में देश के गृह सचिव नियुक्त हुए थे। उनसे पहले ललन प्रसाद सिंह छह साल तक गृह सचिव रहे थे। वे जनवरी 1971 में रिटायर हुए थे और बाद में कई राज्यों के राज्यपाल रहे। भल्ला ने 50 साल से ज्यादा पुराना रिकॉर्ड तोड़ा। उनको भी चार बार सेवा विस्तार मिला। उनकी जगह गोविंद मोहन को नया गृह सचिव बनाया गया है। इसी तरह भारत सरकार ने राहुल नवीन को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के स्थायी निदेशक के तौर पर नियुक्त कर दिया है। वे संजय कुमार मिश्र की जगह कामकाज संभाल रहे थे। मिश्र को भी सुप्रीम कोर्ट के बेहद सक्रिय दखल के बाद हटाया जा सका था। उनका कार्यकाल जारी रखने के लिए तो सरकार ने सीबीआई और ईडी के निदेशकों को पांच साल तक सेवा विस्तार देने का नया कानून ही बना दिया था।

सौजन्य :-पंजाब केसरी

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