आइए आज जानते हैं कि दीवाली के पूजन में कौन-कौन से फल भगवान को चढ़ाए जाते हैं

दिवाली पर्व अमूमन अक्टूबर या फिर नवंबर के पहले हफ्ते में पड़ता है। यह समय ठंड की शुरुआत का होता है। यह समय छत्तीसगढ़ में धान की कटाई का होता है। ​यह समय कई फलों की आवक का भी होता है। धान की बालियां और ठंड के ये फल सबसे पहले माता लक्ष्मी और भगवान गणेश को अर्पित करने के बाद ही इस्तेमाल में लाए जाते हैं। भगवान से कामना की जाती है कि वे सदा भंडार भरे रखें। यह परंपरा या रिवाज युगों से चला आ रहा है। आइए आज जानते हैं कि दीवाली के पूजन में कौन-कौन से फल भगवान को चढ़ाए जाते हैं।

सिंघाड़ा

सिंघाड़ा तालाबों में होता है। यह फल 100 प्रतिशत पेस्टिसाइड से मुक्त होता है, यानी केमिकल रहित होता है। यह ठंड में ही आता है और दिवाली पर इसका विशेष महत्व होता है। यह फल माता लक्ष्मी का प्रिय फल है, इसलिए दिवाली के पूजन में इसे फलों की थाल में रखा जाता है। माता को अर्पित करने के बाद ही इसे खाने में उपयोग किया जाता है।

सीताफल

सीताफल भी ठंड में ही आता है। इसकी आवक शुरू हो चुकी है। यह फल भी दीवाली के पूजन में रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान माता सीता ने इस फल को खाया था। तब से इसका नाम सीताफल पड़ गया है। सीता जी, माता लक्ष्मी की ही अवतार हैं। इसलिए ग्रंथों में इस फल का विशेष महत्व बतलाया गया है।

केला

यूं तो केला 12 महीने आता है, मगर फलों की थाल में यह महत्वपूर्ण फल माना जाता है। यह माता लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान गणेश का भी प्रिय फल होता है। केले के पत्ते को द्वार पर लगाया जाता है। केले के पत्तों को पूजन स्थल पर, जिसमें माता लक्ष्मी और भगवान गणेश को विराजित किया जाता है, उसमें बिछाया जाता है। केला का पत्ता शुभ होता है। इसी तरह आम के पत्ते भी बेहद शुभ माने जाते हैं।

धान की बालिया

छत्तीसगढ़ में दीवाली के मौके पर धान की आवक शुरू हो जाती है। दीवाली में धान की पूजा होती है, साथ ही धान की बालियों को घर के द्वार पर लगाया जाता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। साथ ही घर में कभी भी अनाज की कमी नहीं होती।

आप भी इस बार दिवाली में सिंघाड़ा, सीताफल, और केला को भगवान को अर्पित करें। साथ ही धान की बालियों को द्वार पर सजाएं।

 

 

 

 

 

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