अद्भुत है रतनपुर की मां महामाया की महिमा…यहां देवी की इच्छा से हुआ था मंदिर निर्माण!  

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से लगभग 25 किलोमीटर दूर रतनपुर नगर के खूबसूरत गांव बैमा नगोई में मां महामाया (Ratanpur Mahamaya Mandir) का अलौकिक मंदिर स्थित है. इस मंदिर से जुड़ी एक बेहद खास मान्यता है कि यह मंदिर स्वयं मां आदिशक्ति की इच्छा के अनुसार बनाया गया है. यहां मां अपने तीन स्वरूपों में विराजती हैं और भक्तों का कल्याण करती हैं. छत्तीसगढ़ को पूर्व में दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था. इसलिये मां महामाया को कौशलेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है. नवरात्र का पर्व यहां बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दौरान मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है और विशेष हवन-पूजन किया जाता है.

मंदिर में मूर्ति स्थापना से जुड़ी ये है मान्यता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, 12वीं शताब्दी में कल्चुरी राजा रत्नदेव प्रथम मल्हार से माता की मूर्ती लेकर रतनपुर आ रहे थे. इस दौरान रास्ते में बैमा नगोई गांव में उनके रथ का एक पहिया टूट गया. उसे बनाते-बनाते देर रात हो गई और फिर राजा ने वहीं रात्री विश्राम किया. रात में सोते समय माता राजा के स्वप्न में आई और कहा कि उनके मंदिर की स्थापना इसी जगह पर कर दी जाए. राजा ने मां की इच्छा के अनुसार उनका मंदिर बैमा नगोई में ही बनवाया. हालांकि वर्तमान में इसे रतनपुर महामाया के नाम से ही जाना जाता है.

मां महामाया तीन रूपों में देती है दर्शन

रतनपुर में मां आदिशक्ती के तीन रूपों के दर्शन मिलते हैं. माता महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के रूप में भक्तों का कल्याण करती हैं. मां के महालक्ष्मी रूप के दर्शन से भक्तों की आर्थिक तंगी से मुक्ति मिलती है और धन-वैभव बढ़ता है. वहीं धन को सम्हालने के लिए विद्या (ज्ञान) का होना आवश्यक है इसलिए मां के महासरस्वती रूप के दर्शन से श्रद्धालुओं को सदबुद्धी मिलती है. इसके अलावा मां महाकाली रूप के दर्शन करने से भक्तों का काल भी टल जाता है. माता के इन तीनों रूपों में समाहित स्वरूप को ही मां महामाया की संज्ञा दी गई है. बताया जाता है कि देवी पुराण और दुर्गा सप्तशती में मां महामाया के बारे में जो कुछ लिखा है, रतनपुर में ठीक उन्हीं रूपों के दर्शन होते हैं.

गर्भगृह में स्थापित हैं माता की दोहरी प्रतिमा

मंदिर के मुख्य गर्भगृह में मां की दोहरी प्रतिमा स्थापित है. सामने माता के महालक्ष्मी रूप की प्रतिमा है और पीछे महासरस्वती रूप की प्रतिमा विद्यमान है. माता का यह मंदिर 16 स्तंभों पर टिका है. वहीं मंदिर प्रांगण से लोगों को हरे-भरे पहाड़ियों और प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा देखने को मिलता है. आस पास बड़े वृक्ष और कई तालाब होने के कारण यहां का वातावरण भी मनमोहक बना रहता है.

नवरात्र पर्व में पहुंचते हैं 2 लाख से अधिक भक्त

माता के इस मंदिर में नवरात्र में भक्त अपने नाम से अखण्ड ज्योति जलवाते हैं, जो 9 दिन और 9 रात अखण्ड रूप से जलती है. इसे मां आदिशक्ति का रूप और उन्हें अखंड मनोकामना नवरात्र ज्योति कलश भी कहा जाता है. इसके दर्शन को दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं. बताया जाता है कि यहां हर साल नवरात्र पर्वों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं

काल-भैरव करते हैं देवी स्थल की रक्षा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, आदिशक्ती के सभी मंदिरों की रक्षा भगवान काल भैरव करते हैं. इस मान्यता के अनुसार राजमार्ग पर महामाया मंदिर से पहले काल भैरव का मंदिर स्थित है. माना जाता है कि माता के दर्शन के साथ ही बाबा काल भैरव के दर्शन करने पर देवी तीर्थ स्थलों की यात्रा सफल होती है.

आसपास और भी हैं ऐतिहासिक मंदिर 

रतनपुर में महामाया मंदिर के आसपास और भी बहुत से मंदिर है जो अपने आप में समान रूप से समृद्ध ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व रखते हैं. इनमें से एक महामृत्युंजय पंचमुखी शिव मंदिर  और कंठी देवल मंदिर है. पंचमुखी शिव मंदिर  लाल पत्थर से बना एक भव्य वास्तुकला का रूप है. वहीं कंठी देवाल मंदिर  आकार में अष्टकोणीय है और माना जाता है कि यह हिंदू और मुगल वास्तुकला शैली की है. लाल पत्थर से बने इस मंदिर की सभी दीवारें 9वीं से 12वीं शताब्दी की मूर्तियों से सजी हैं.

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *