आज शारदीय नवरात्रि का नौंवा दिन हैं जो माता के नौंवे स्वरूप यानि मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है। इस बार तिथि को लेकर असमंजस होने के चलते आज अष्टमी और नवमी दोनों की ही पूजा की जा रही है। जैसा कि, नाम से ही उल्लेख करें तो माता को सिद्धि देने वाली दात्री कहा जाता है। कहते हैं, नवमी तिथि को कोई भी भक्त माता की पूजा भक्तिभाव के साथ कर लेता हैं उसके सारे कार्य सिद्ध होते हैं और मोक्ष मिलता है। माता की पूजा हर वर्ग के लोग करते है आराधना को लेकर कोई बंधन नहीं है। चलिए जानते हैं मां की पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व।
अर्धनारीश्वर से जुड़ा मां सिद्धिदात्री का उल्लेख
हिंदू धर्म के अनुसार, मां सिद्धिदात्री को 8 सिद्धियां अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व की दात्री माना जाता है। माता के स्वरूप की व्याख्या करें तो, देवी की कृपा से मां लक्ष्मी के समान कमल के आसन पर विराजमान है। माता के हाथों में कमल, गदा, सुदर्शन चक्र, शंख धारण किए हुए है। मां दुर्गा इस रूप में लाल वस्त्र धारण की हैं। इतना ही नहीं माता की कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी से जुड़ा हुआ था। कहते हैं कि, नौवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा करने से मां की कृपा भक्तों को प्राप्त होती हैं और सभी कार्य आपके पूरे होते है।
जानिए पूजा विधि
माता सिद्धिदात्री की पूजा विधि-विधान के साथ की जाती हैं इसका नियम इस प्रकार है…
1- शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर ही घर की पूरी साफ सफाई के बाद अन्य दिनों की तरह ही माता की पूजा-अर्चना करें।
2- इसके बाद माता की पूजा करने से बाद सभी देवी-देवताओं की भी पूजा करें।
3- माता सिद्धिदात्री की पूजा के दौरान हवन करना जरूरी होता है।
4-लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर मां की मूर्ति या तस्वीर रखें।
5-फिर चारों तरफ गंगाजल से छिड़काव करें। इसके बाद माता को पूजा सामग्री अर्पित करके हवन करें।
6-हवन करते समय सभी देवी-देवताओं को नाम की आहुति भी एकबार दे दें।
हवन के समय दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक के साथ मां दुर्गा की आहुति भी दी जाती है।
इसके साथ ही देवी के बीज मंत्र ‘ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:’ का 108 बार जप करते हुए आहुति दें और फिर आरती उतारें।
पूजा में लगाए ये विशेष भोग
माता दुर्गा के इस नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा करने के बाद भोग लगाना जरूरी होता है।मां सिद्धिदात्री को भोग में हलवा व चना का विशेष महत्व है। इसके साथ ही पूड़ी, खीर, नारियल और मौसमी फल भी अर्पित करें और व्रत का पारण करें।